
वर्षा ऋतू ''सुरेशचंद्र शुक्ल , शरद आलोक''
वर्षा ऋतू
दुःख में न घबराना सुख में न इतराना,
वर्षा ने सिखलाया जनहित में बरसाना ||
वर्षा कि ऋतू आई बादल छाने लगे,
धरती के आँगन में पानी बरसाने लगे |
खेत खलिहानों में हरियाली आने लगी ,
पोखर, नहर और नदी जल से भरने लगी ||
वर्षा के आने पर किसान गीत गाने लगे,
दादुर झींगुर सभी मोर संग नाचने लगे ||
बच्चे भी कागज की नावे बनाने लगे,
बहते पानी में नावे चलने लगे||
कागज कि नावे भी प्यारी सी लगती है,
पत्तो के दोनों पर दीप सी लगती है|
वर्षा के जल में तुमने जी भर नहाया है?
पांवो पर बहे पानी ने कभी गुदगुदी लगाया हैं?
गरज बरस बादल में जब बिजली चमकती हैं
अँधेरे में कभी –कभी रंगमंच लगती हैं |
सुरेशचंद्र शुक्ल , शरद आलोक