
Chhath (छठ पूजा)20 नवंबर 2020 ( दिन शुक्रवार ), Puja Vidhi Chhath Ka Prasad
Chhath (छठ पूजा) 2020
छठ पूजा की मुहूर्त –
पूजा का दिन 20 नवंबर दिन शुक्रवार सन 2020
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त का शुभ मुहूर्त - 6 बजकर 48 को संध्या अर्घ
पूजा का दिन 21 नवम्बर को सूर्योदय का शुभ मुहूर्त -06 बजकर 35 मिनट को उषा अर्घ्य
षष्ठी तिथि आरंभ -21:58 ( 20 नवम्बर 2020 )
षष्ठी तिथि समाप्त – ( 21 नवम्बर 2020)
छठ पूजा की सरणी
18 अक्टूबर – छठ पूजा नहाय – खाय दिन
19 नवम्बर –खरना का दिन
20 नवम्बर -.छठ पूजा संध्या अर्घ्य पूजा का दिन
21 नवम्बर –उषा अर्घ्य का दिन
छठ पूजा का सामग्री-
1. गन्ना 5.
2. प्रसाद रखने के लिए दो तीन बांस की बड़ी टोकरी |
3. नया कपडा सारी व्रती के लिए और चढाने के लिए पुरुषो के कुरता पैजामा या आपको जो पसंद हो |
4. फल जैसे - अनानास ,सेब ,केला ,अनार ,अमरुद ,नारियल ,संतरा ,बड़ा वाला मीठा निम्बू
5. सब्जिया जैसे – मुली ,गाजर सलगम ,कच्ची हल्दी ,अदरक
6. बड़ा दिया ,छोटी दिये ,मोम बत्तिया, बाती, घी, सरसों तेल, अगरबत्ती, धुप बत्ती, इत्र.
7. चावल,लाल सिंदूर ,पिला सिंदूर.
8. सकर कंदी ,सुथनी.
9. गाय का दूध और गिलास
10. पान ,सुपारी साबुत ,सहद , कपूर ,चन्दन ,कुमकुम ,कैराव , मिठाई ,बतासे ,पेठा ,ठेकुआ ,मालपुआ ,ख़स्ता ,पूरी लाडू , कलश रखने के लिए लोटा ,आम का 5 पत्ता ,कोशी मिट्टी की, चुडा ,लैया ,मक्का भुना हुआ ,चना भुना हुआ |
छठ व्रत की विधि-
नहाय –खाय -
छठ पूजा व्रत चार दिन का होता है | पहले दिन नहाया खाया जाता है जिसमे लौकी और चने की दाल बनती है चावल शुद्ध साकाहारी भोजन बना के खाई जाती है | और घर की साफ सफाई की जाती है |
खरना –
खरना विधि में पुरे दिन उपवास रखा जाता है शाम के समय गुड का खीर या गन्ने के रस का खीर बनायीं जाती है और प्रसाद बनाकर खायी जाती है |
शाम का अर्घ्य -
तीसरे दिन सूर्य षष्ठी को पुरे दिन उपवास रखकर शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पूजा की सामग्रियों को लकड़ी के डाले में रखकर घाट पर ले जाना चाहिए | शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर आकर सारा सामान वैसे ही रखना चाहिए | इस दिन रात के समय छठी माता के गीत गाना चाहिए |
सुबह का अर्घ्य-
घर लौटकर सुबह ( चौथे दिन ) सुबह सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुचना चाहिए | उगते हुए सूरज की पहली किरण को अर्घ्य देना चाहिए इसके बाद घाट पर छठ माता को प्रणाम करके उनसे संतान के लम्बे आयु का वर मांगना चाहिए | अर्घ्य देने के बाद घर लौटकर सभी में प्रसाद वितरण करना चाहिए था खुद भी प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलना चाहिए |
छठ पूजा की कथा-
छठ पूजा से सम्बंधित पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के राजा थे | उनकी पत्नी का नाम मलिनी था | परन्तु दोनों को कोई बालक नही था | इस बात से राजा और उनकी पत्नी बहुत दुखी रहते | थे उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महार्सी कश्यप द्वारा पुत्रेस्ठी यज्ञ करवाया | इस यज्ञ के उपरांत रानी गर्भवती हो गयी नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मारा हुआ पुत्र पैदा हुआ | इस बात का पता चलने पर रजा को बहुत दुःख हुआ | संतान शोक में वह आत्म हत्या करने को मन बनाये | परन्तु जैसे ही राजा ने आत्म हत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुन्दर देवी प्रकट हुई देवी ने रजा को कहा की मई षष्टी देवी हु | मै लोगो को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हु | इसके अलावा जो सच्चे मन से मेरी पूजा करता है ,मै उसके सभी प्रकार के मनोकामना को पूरी करती हु यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मई तुम्हे पुत्र रत्न प्रदान करुँगी ,देवी की बातो से प्रभावित हो कर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया | राजा और रानी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्टि की पुरे विधि विधान से पूजा और व्रत रखा | इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई उसी समय से छठ का पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता है | षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में छठ मैया बोला जाता है |षष्टी देवी को ब्रम्हा की मनास्पुत्री भी कहा गया है | वो निःसंतान को संतान देती है ,संतान को दिर्घ्यायु प्रदान करती है | बच्चो की रक्षा करना भी उनकी स्वाभाविक गुण धर्म है | इन्हें इन्हें विष्णुमाया तथा बालदा अर्थात पुत्र देने वाली भी कहा गया है | कहा जाता है जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती है वो इन्ही षष्ठी देवी पूजा की जाती है | यह अपना अभूत पूर्व वात्सल्य छोटे बच्चो को प्रदान करती है | हिन्दू पुरानो के अनुसार माँ छठी को ’ कात्यायनी ’ नाम से और भी जाना जाता है |
छठ की पूजा विधि-
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिए की जाती है | भगवान सूर्य देव की कृपा से सेहत अच्छी रहती है और घर में धन धान्य की प्राप्ति होती है | संतान प्राप्ति के लिए भी छठ पूजन का विशेष महत्व है |तालाब या नदी घाट पर जाया जाता है | वहा पर मिट्टी की बेदी बनाई जाती है कुछ लोग सीमेंट का भी बनवाते है छठ पूजा के दिन (षष्ठी ) को पुरे परिवार के लोग नया कपडा पहन कर सज धज कर बॉस की दौरी (टोकरी) में सजे फल प्रसाद को अच्छे से ढक कर गाजे बाजे के साथ गीत भजन गाते हुए सब लोग घाट पे जाता है | छठ माता को सारा प्रसाद साड़ी चढ़ाके दीपक जलाके रखा जाता है सारी महिलाएं गीत मंगल गा कर माता को प्रसन्न करती है | उसके बाद सुभ मुहूर्त में डूबते सूर्य की आराधना की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है और उनसे परिवार की खुशहाली के विनती करते है |
अगले दिन (सप्तमी ) को फिर सारा पूजा पाठ करके धुप अगरबती दिखा के दीपक जलाके उगते हुए सूर्य भगवान् की उपासना कर अर्घ्य दी जाती है | इस तरीके से नदी घाट पर हवन की परिक्रिया भी पूरी की जाती है और पूजा के सभी के बीच प्रसाद वितरण करते है | पंडितजी को सामर्थ्य अनुसार दान देते है घाट पर ही कुछ दान गरीबो के बीच भी की जाती है और उसके बाद व्रती घर आकर घर में अपने बड़ो का आशीर्वाद लेती है | और अदरक जो प्रसाद में चढ़ाया गया था उसकी चाय बनाकर व्रत खोलती है उसके बाद प्रसाद खाती है | फिर भोजन करती है |
छठ पूजा का महत्त्व-
छठ पूजा को लेकर हिन्दुओ में काफी को काफी आस्था है | यह पर्व पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है | यह पर्व चार दिन का होता है इस पूजा में सूर्य देव और छठ मैया की उपासना की जायेगी | इस पर्व को खास तौर पर बिहार , झारखण्ड ,पूर्वी ऊतर प्रदेश और पडोसी देश नेपाल में देखने को मिलती है | मान्यता है की छठ पूजा करने से छठी मैया प्रसन्न होकर सभी की मनोकामनाए पूर्ण कर देती है | यह व्रत और पूजा आरोग्य की प्राप्ति ,सौभाग्य व् संतान के लिए रखा जाता ह | स्कन्द पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा जाता है |उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था सूर्य भगवान की आराधना से मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था |
अर्घ्य के सामानों का महत्व -
सूप- अर्घ्य में नए बॉस से बनी सूप या पीतल का सूप व् डाले का प्रयोग किया है सूप से वंश की वृद्धि होती है और वंश की रक्षा होती है.
ईख - ईख आरोग्यता को प्रदान करता है.
फल - मौसम के फल फल प्राप्ति का छोतक है.
ठेकुआ - ठेकुआ समृधि प्रदान करता है |
जय हो छठी मैया जय हो सूर्य भगवान् |